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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर गेरा |अनुवादक= |संग्रह=लम्हो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उसके हमराह सफ़र कर देखो
फिर बदलते हुए मंज़र देखो
इक जज़ीरे पे रहो तन-तन्हा
हर तरफ एक समंदर देखो
वक़्त से आगे निकल जाओ बहुत
इक क़दर तेज़ भी चलकर देखो
मौजज़न इसमें हैं लहरें कितनी
अपने अंदर भी समंदर देखो
जान जाओगे हवा के रुख़ को
तुम ज़रा ख़ाक उड़ा कर देखो
जानना चाहो जो पानी का मिज़ाज
मेहर दरिया में उतर कर देखो।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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उसके हमराह सफ़र कर देखो
फिर बदलते हुए मंज़र देखो
इक जज़ीरे पे रहो तन-तन्हा
हर तरफ एक समंदर देखो
वक़्त से आगे निकल जाओ बहुत
इक क़दर तेज़ भी चलकर देखो
मौजज़न इसमें हैं लहरें कितनी
अपने अंदर भी समंदर देखो
जान जाओगे हवा के रुख़ को
तुम ज़रा ख़ाक उड़ा कर देखो
जानना चाहो जो पानी का मिज़ाज
मेहर दरिया में उतर कर देखो।
</poem>