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<poem>
अभी उम्मीद है ज़िन्दा अभी इम्कान बाक़ी है
बुलंदी पर पहुँचने का अभी अरमान बाक़ी है

हुआ है दूर कोसों आदमी संवेदनाओं से
बदलते दौर में बस नाम का इंसान बाक़ी है

सजा लो जितना जी चाहे रंगीले ख़्वाब आँखों में
दुकानों पर सजावट का बहुत सामान बाक़ी है

कहाँ ले चल दिए हो तुम उठा कर चार कांधों पर
अभी तो दिल धड़कता है अभी कुछ जान बाक़ी है

सुनाता हूँ ज़रा ठहरो हकीकत ज़िंदगानी की
कहानी तो मुकम्मल है मगर उन्वान बाक़ी है

अभी कुछ लोग हैं ऐसे उसूलों पर जो चलते हैं
अभी कुछ लोग हैं सच्चे अभी ईमान बाक़ी है

हुए ‘अज्ञात' से वाकिफ हजारों लोग दुनिया में
मगर ख़ुद ही से ख़ुद उस की अभी पहचान बाक़ी है
</poem>
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