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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
दोस्ती मुझ से बढ़ाना चाहता है
घर मिरे दिल में बनाना चाहता है

रफ़्तारफ़्ता पास आकर वो मिरे
दूरियां सारी मिटाना चाहता है

ज़िंदगी के आख़िरी इस मोड़ पर भी
वक़्त मुझ को आज़माना चाहता है

चैन से जीने नहीं देता है मुझ को
जाने क्या मुझ से ज़माना चाहता है

ग़ैर मुमकिन करने की ली ठान उस ने
आग पानी में लगाना चाहता है
</poem>
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