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<poem>
बच्चे‚ बूढ़े जिसको देखो जीवन की इन राहों पर
चिंताओं के गठ्ठर लादे चलते हैं सब कांधों पर

मत लादो इतना बोझा इन नन्हींनन्हीं पीठों पर
ये बस्ते भारी पड़ते हैं छोटेछोटे बच्चों पर

मंज़िल पाने से उसको क्या रोकेगी बाधा कोई
जिसने चलना सीख लिया है हँसतेहँसते ख़ारों पर

साहिल पर लंगर डाला था जिस कश्ती ने बरसों से
हिचकोले खाती है वो ही अब दर्या की मौजों पर

जख़्मों पर मरहम पट्टी की जिससे भी उम्मीद रखी
उसने ही छिड़का है देखो नून हमारे ज़ख़्मों पर
</poem>
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