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<poem>
बेशुमार व्यर्थ की ख्व़ाहिशों को कम करें
ज़िंदगी की राह को आइए सुग़म करें

हँसते-खेलते हुए ज़िंदगी गुजार दें
हों किसी भी हाल में हम न ग़म अलम करें

सूझता नहीं है कुछ हाक़िमों को किस तरह
आस्मां को चूमती कीमतों को कम करें

छल रहे हों मोअतबर ही हमें तो फिर भला
ऐतबार किस तरह अज़नबी का हम करें

चाहा जिस की किस्मतें आप ने संवार दी
इल्तिज़ा है आप से मुझ पे भी करम करें

हौसला रखें सदा जिंदगी की जंग में
जीतने की कोशिशें आप दम-ब-दम करें

हाथ में है आप के ज़िंदगी का फैसला
चाहे हम को बख्श दें चाहे सर क़लम करें
</poem>
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