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<poem>
जो बीत गया उस पर रोने से क्या होगा
कांधों पर मुर्दों को ढोने से क्या होगा

छूटेंगे नहीं जब तक ये दाग तेरे दिल से
दामन के दाग भला धोने से क्या होगा

उठ जाग जतन कर ले आलस को दूर भगा
दिन-रात नशा कर के सोने से क्या होगा

विपदा की घड़ियों में सीखो संयम रखना
अपना-आपा यूं ही खोने से क्या होगा

‘अज्ञात' तजुर्बा भी जीवन में जरूरी है
बेमौसम बीजों को बोने से क्या होगा
</poem>
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