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|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
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<poem>
हट गुनगुनाये सवेरा हुआ;;
गुलिस्ताँ में हर सू उजाला हुआ

ज़माने से आशा न रखना कोई
ये ज़ालिम भला कब किसी का हुआ

हुए मुग्ध बच्चे कहानी में तब
जो परियों का उस में बसेरा हुआ

तवक्क़ो नहीं हम को इस से कोई
जब इँसाफ़ ही अन्धा बहरा हुआ

तुम्हें ले के जाऊँगी मंज़िल पे मैं
है रस्ता मिरा देखा भाला हुआ

किसी नेक साइत में जन्मा था वो
बुज़ुर्गों की आँखों का तारा हुआ

चलो खेल गुड़ियों का खेलें कहीं
खिलौनों से खेले ज़माना हुआ

निकल आओ ख़्वाबों की दुनिया से अब
'अनु' तुम भी जागो सवेरा हुआ
</poem>
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