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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
गीत सुनना सुनाना भूल गए
मस्तियों का ज़माना भूल गए
यूं हुआ उनसे सामना कुछ आज
हम से आंखें चुराना भूल गए
कलियां खिलती थीं फूल हंसते थे
आप क्या वो ज़माना भ्ूुल गए
देर थी आंख बंद होने की
हम को अह्ले-ज़माना भूल गए
उन को देखा जो रुबरु अपने
आइने मुस्कुराना भूल गए
देख जाओ वो घर है अब कैसा
तुम जहां आना जाना भूल गए
रेत के घर बनाए थे हमने
लेकिन उन को बसाना भूल गए
अब के गुज़री है ऐसे दीवाली
कुछ दीए जगमगाना भूल गए
जाने क्ंयू लोग-बाग अब के बरस
बस्तियों को जलाना भूल गए
</poem>
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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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गीत सुनना सुनाना भूल गए
मस्तियों का ज़माना भूल गए
यूं हुआ उनसे सामना कुछ आज
हम से आंखें चुराना भूल गए
कलियां खिलती थीं फूल हंसते थे
आप क्या वो ज़माना भ्ूुल गए
देर थी आंख बंद होने की
हम को अह्ले-ज़माना भूल गए
उन को देखा जो रुबरु अपने
आइने मुस्कुराना भूल गए
देख जाओ वो घर है अब कैसा
तुम जहां आना जाना भूल गए
रेत के घर बनाए थे हमने
लेकिन उन को बसाना भूल गए
अब के गुज़री है ऐसे दीवाली
कुछ दीए जगमगाना भूल गए
जाने क्ंयू लोग-बाग अब के बरस
बस्तियों को जलाना भूल गए
</poem>