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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
कितने ही रंगों के पंछी
रंगांे के शहजादे पंछी

बज़़ारों में बेचे जाते
सुन्दर भोले भाले पंछी

गीत मिलन के गाते रहना
धीरे धीरे मन के पंछी

झूम के मस्ती में इठलाऐ
पिजरों से जो छूटे पंछी

आज़ादी से उड़ते फिरते
काश के हम भी होते पंछी

मेरे घर की छत पर अक्सर
दाना दुनका चुगते पंछी

दिन भर छू कर नील गगन को
सांझ ढले घर लौटे पंछी

सर्दी का मौसम आते ही
दूर देश से आये पंछी

आया जब फूलों का मौसम
सब रंगो के देखे पंछी
</poem>
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