भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसीम बरेलवी |अनुवादक= |संग्रह=मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात के हाथ से दिन निकलने लगे
जायदादो के मािलक बदलने लगे

एक अफ़वाह सब रौनक़े ले गयी
देखते-देखते शह्र जलने लगे

म तो खोया रहूंगा तेरे प्यार मे
तू ही कह देना, जब तू बदलने लगे

सोचने से कोई राह मिलती नही
चल दिए है तो रस्ते निकलने लगे

छीन ली शोहरतों ने सब आज़ािदयां
राह चलतो सेरिश्ते िनकलने लगे
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,998
edits