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वतन का गीत / गोरख पाण्डेय

26 bytes added, 20:07, 30 सितम्बर 2018
[[Category:कविता]]
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो,नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी होहो।नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों,मुहब्बत की कोई नई रागिनी होहो।न हो कोई राजा , न हो रंक कोई,सभी हों बराबर सभी आदमी होंहों।न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले,हमारे दिलों की न सौदागरी होहो।ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई,निगाहों में अपनी नई रोशनी होहो।न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन,न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी होहो।सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में,कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली होहो।नये नए फ़ैसले हों नई कोशिशें हों,नयी नई मंज़िलों की कशिश भी नई हो.हो।
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