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{{KKRachna
|रचनाकार=जंगवीर सिंंह 'राकेश'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
सौदा-ए-ग़म नहीं किया हमने
ज़ख़्म मरहम नहीं किया हमने
हर सितम चीख का सबब था मगर
आँखों को नम नहीं किया हमने
एक मुद्दत से बस तराशा तुझे,
और जुनूँ कम नहीं किया हमने
दर्द-ए-पैहम जिगर में रक्ख़ा पर
दर्द दमख़म नहीं किया हमने
तेरी क़िस्मत बदल भी सकती थी
'तुम' को बस 'हम' नहीं किया हमने !
</poem>
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सौदा-ए-ग़म नहीं किया हमने
ज़ख़्म मरहम नहीं किया हमने
हर सितम चीख का सबब था मगर
आँखों को नम नहीं किया हमने
एक मुद्दत से बस तराशा तुझे,
और जुनूँ कम नहीं किया हमने
दर्द-ए-पैहम जिगर में रक्ख़ा पर
दर्द दमख़म नहीं किया हमने
तेरी क़िस्मत बदल भी सकती थी
'तुम' को बस 'हम' नहीं किया हमने !
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