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एक रोज / विनय सौरभ

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जिस जग​​ह को
हम हृदय की अतल
गहराइयों से प्यार करते रहे

एक गहरी कचोट
और डूबते हुए दिल
के साथ छोड़ देनी
होती है एक रोज.!!

</poem>
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