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04:51, 5 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= विनय सौरभ
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avita}}
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वे हर एक शहर में हैं
काम पर जाती हुईं
काम से लौटती हुईं
शोहदों और लफ्फ़ाज़ों के अनंत शोर से अपने को बचाने की कोशिश में भरी हुईं
वे दिन और रात की तरह सच हैं
हमारी दुनिया में
साधूजनों की वाणियों उनके लिए परोसी शालीनता और अखबारों में दर्ज़ क्रूरताएँ भी हैं अपनी जगह
उनके सपनों अकेलेपन और संघर्षों के अनंत किस्से लिखते रहे हैं
शहरों के कवि !
कहा गया है ओस की तरह हैं उनकी इच्छाएँ जो कठिन मेहनत और दुख की आँच में सूख जाती हैं
लंबी उम्र जीती हैं उनमें से बहुत कम
प्रसवास्था में मर जाती हैं
या छोटी- मोटी बीमारियों में
और हरेक शहर की छोटी - संकरी गलियों में उनके किराए के घर
अनगिनत स्मृतियों की गंध से
देवताओं के फोटुओं से
सस्ती अगरबत्ती की बची हुई खूशबुओं में तिरते हुए
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