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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=जिल्लत ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
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<poem>
दुखद कहानियाँ जागती हैं
रात ज़्यादा काली हो जाती है
और चन्द्रमा ज़्यादा अकेला
दुखद कहानियाँ जागती हैं<br>रात ज़्यादा काली हो जाती है<br>और चन्द्रमा ज़्यादा अकेला<br><br>इनका नायक अभी मंच पर नहीं आया
इनका नायक अभी मंच पर या बार-बार वह आता हैअब किसी मसखरे के वेष मेंऔर पहचाना नहीं आया<br><br>जाता
या बार-बार वह आता है<br>दुखद कहानियाँ जागती हैंअब किसी मसखरे के वेश जो सुबह की ख़बरों में<br>छिपी हुई रहींऔर पहचाना नहीं जाता<br><br>दिनचर्या की मदद सेहमने जिनसे ख़ुद को बचाया
दुख कहानियाँ जागती हैं<br>जो सुबह की ख़बरों में छिपी हुई रहीं<br>और दिन चर्या की मदद से<br>हमने जिनसे ख़ुद को बचाया<br><br> इन्हें सुनते हुए हम अक्सर बेख़बरी में<br>मृत्यु के आसपास तक चले जाते हैं<br>
या अपने जीवन के सबसे गूढ़ केन्द्र में लौट आते हैं
</poem>
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