भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
1
ईर्ष्या अनल जगी
सब ही जला
विद्रूप हुआ रूप।
4
'''निर्मलमना !'''
गोमुख के जल-सा
पावन प्यार