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<poem>
​​जानता हूँ यह कोई वीरगाथा नहीं है
कितने लोग जो बदल नहीं पाए दुनिया को
और न जीत पाए घटनाओं भरी तवारीख में
भूख-प्यास और चुप्पी भरी जिल्लतों के बीच
मामूली जिन्दगी जीते हुए लड़े हारे और बच रहे

चमकते शानदार हैं यह शहादत ये शौर्य-पदक
लेकिन कुछ लोग रोज गुमनाम शहीद होते हैं
न शोक न विलाप न गुणगान न कोई वीरगाथा
धैर्यपूर्वक जीवन के जरूरी काम करते हुए वे जीते-मरते हैं
ऐश्वर्य से छिन्न-भिन्न दुनिया के जख्मों को भरते हैं।

</poem>
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