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दुनियादार लोग क्षमा करें मैं हिसाब-किताब नहीं जानता
मैं बस अपना काम करता हूँ जैसा वह मुझ से बन पड़े
अनगिनत हैं फिक्रमन्द मुझे उनसे ईष्र्या होती है
मुझ में वैसी सामर्थ्य नहीं,
उन्हें देख मैं शर्मिन्दा होता हूँ
अच्छे-बुरे को लेकर भी ज्यादा माथापच्ची नहीं करता
कोशिश करता हूँ जिस्म तंदुरस्त रहे खोपड़ी दुरस्त
मैं प्यार करता हूँ पत्नी ​​से जो सुन्दर है और साहसी भी
अपनी जरूरतों में कम-कम और संघर्ष में अदम्य
विजय के इरादे से मैं बाघ-सा आगे बढ़ता हूँ
लेकिन हिरन की सी शाकाहारी मासूमियत के साथ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ हर हाल
ईश्वर होने से बचता हूँ मैं ईश्वर से डरता हूँ।

</poem>
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