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05:43, 17 अक्टूबर 2018
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|रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत
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avita}}
<poem>
यह मेरा पूर्वाग्रह नहीं है
मेरी आत्मा का खालिस सच है
मैं नहीं रह सकता वहाँ एक पल भी
जहाँ प्रेम का शिष्टाचार निभाया जाता है
निरी औपचारिकता के नाम पर
झूठ-मूठ का नम्र व्यवहार किया जाता है
प्यार के सुचिक्कन अभिजात्य की बजाए
मैं जिन्दा हूँ जीवन की ठोस घृणा में
दोस्तो मुझे सख्त घिन है
कमबख्त सफेदपोश दौगलेपन से
लम्बी नाक वाले छलिया अभिनेताओं से
बोल, ऐ जीवन की सच्चाई बोल!
</poem>