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जो बीत गई / हरिवंशराय बच्चन

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जीवन में एक सितसरा सितारा था,
माना, वह बेहद प्‍यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया;
अंबर के आननउ आनन को देखे,
कितने इसके तारे टूटे,
प्‍याले टूटा ही करते हैं,
फिर भी मदिरारलय मदिरालय के अंदर
मधु के घट हैं, मधुप्‍याले हैं,
जो सच्‍चे मधु से जला हुआ
कब रोता है, कब चिल्‍लाता है {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन}}  जो बीत गई सो बात गई!  जीवन में एक सितारा था, माना, वह बेहद प्‍यारा था, वह डूब गया तो डूब गया; अंबर के आनन को देखे, कितने इसके तारे टूटे, कितने छूट गए कहाँ मिले; पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है! जो बीत गई सो बात गई!  जीवन में वह था एक कुसुम, थे उस पर नित्‍य निछावर तुम, वह सूख गया तो सुख गया; मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाई कितनी वल्‍लरियाँ, जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं; पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है; जो बीत गई सो बात गई!  जीवन में मधु का प्‍याला था, तुमने तन-मन दे डाला था, वह टूट गया तो टूट गया; मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्‍याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, जो गिरते हैं कब उठते हैं; पर बोलो टूटे प्‍याले पर कब मदिरालय पछताता है!
जो बीत गई सो बात गई!
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