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Kavita Kosh से
हौले से उतार कर ।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर ।।कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ ।छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ ।।हुआ।
धूप गुनगुनाने लगी,
शीत मुस्कुराने लगी ।लगी।
मौसम की ये खुमारी,
मन को अकुलाने लगी ।।लगी।
आग का मीठापन जब,
गुड से भीना हुआ ।हुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ ।।हुआ।
हवायें हुई संदली,
चाँद हुआ शबनमी ।शबनमी।
मोरपंख सिमट गए,
प्रीत हुयी रेशमी ।।हुई रेशमी।
बातों-बातों मे में जब,दिन कही कहीं गुम हुआ ।हुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ ।।हुआ।
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