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<poem>
सुग्गों की है लगी सभा भाई,
कर रही नीम उनकी अगुवाई।

छोटकी चाची बिलो रही माठा,
बज रही मथनी जैसे शहनाई।

जाँत चकरी की मीठी धुन सुन-सुन,
झूम उट्ठी हो जैसे अमराई।

धान काँड़े है सुब्हदम चाची,
गा-रही झूम-झूम पुरवाई।

लेके मेटी जो दूध की निकले,
गाय बब्बा को देख रम्भाई।

सानी-पानी में व्यस्त हैं भइया,
बैल ये द्वार की हैं रानाई।

लिट्टी-चोखे की गंध मत पूछो,
सुब्ह ख़ुद आप ही है बौराई।

बिट्टी बउआ को गोद में लेकर,
छोटकी चाची के घर घुमा लाई।

देख अम्मा को यूँ तके लेरुआ,
जैसे मेरा हो वो सगा भाई।
</poem>
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