भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीरति कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कीरति कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वादा करके मेरे श्याम दग़ा दी तूने।
गै़रों के रहके सारी रात गमा दी तूने॥
शाम से रात तपौअर में गुज़ारी मैंने।
क्या बिगाड़ा था मेरी जान सज़ दी तूने॥
जान जाती है मेरी तुझको मज़ा आता है।
वादा करके भी मुहब्बत को घटा दी तूने॥
तुम मिलो या न मिलो मैं तुम्हें भूलूँगी नहीं।
मिल गये गर तो जी ‘कीरति’ को बना दी तूने॥
रातभर वस्ल में मिल करके मज़ा दी तूने।
लगी थी आग मेरे दिल में बुझा दी तूने॥
मिल गये नन्दलाल क्या करूँ उनकी मैं अदब।
लेके उल्फ़त का मज़ा खूब चला दी तूने॥
रात की बात सखी क्या कहूँ कु कह न सकूँ।
मिल गये श्याम मुझे रात जिला ली तूने॥
हो गये कीर्ति-पिया अब न किनारा करना।
अब तो मिलना पड़ेगा बान लगा दी तूने॥

</poem>
761
edits