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|रचनाकार=तोरनदेवी 'लली'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
यह मैंने माना जीवन-धन!
सुन्दरता जीवन का मूल।
इस मायारूपी प्रप´्च में
सरल जगत जाता है भूल॥
रमणी के च´्चल नयनों का,
या सौन्दर्य प्रकृति का जाल।
तोड़ सका है इस पृथ्वी पर,
बिरला ही माई का लाल॥
किन्तु मधर फल जीवन का
यदि साधुशीलता पाऊँगी।
यह आशा है अखिल विश्व पर
पूर्ण विजय पा जाऊँगी॥
</poem>
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यह मैंने माना जीवन-धन!
सुन्दरता जीवन का मूल।
इस मायारूपी प्रप´्च में
सरल जगत जाता है भूल॥
रमणी के च´्चल नयनों का,
या सौन्दर्य प्रकृति का जाल।
तोड़ सका है इस पृथ्वी पर,
बिरला ही माई का लाल॥
किन्तु मधर फल जीवन का
यदि साधुशीलता पाऊँगी।
यह आशा है अखिल विश्व पर
पूर्ण विजय पा जाऊँगी॥
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