भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोरनदेवी 'लली' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तोरनदेवी 'लली'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}

<poem>

यह मैंने माना जीवन-धन!
सुन्दरता जीवन का मूल।
इस मायारूपी प्रप´्च में
सरल जगत जाता है भूल॥
रमणी के च´्चल नयनों का,
या सौन्दर्य प्रकृति का जाल।
तोड़ सका है इस पृथ्वी पर,
बिरला ही माई का लाल॥
किन्तु मधर फल जीवन का
यदि साधुशीलता पाऊँगी।
यह आशा है अखिल विश्व पर
पूर्ण विजय पा जाऊँगी॥

</poem>
761
edits