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<poem>
मेरे भोले सरल हृदय ने कभी न इस पर किया विचार-
विधि ने लिखी भाल पर मेरे सुख की घड़ियाँ दो ही चार!
छलती रही सदा ही आशा मृगतृष्णा-सी मतवाली,
मिली सुधा या सुरा न कुछ भी, दही सदा रीती प्याली।
मेरी कलित कामनाओं की, ललित लालसाओं की धूल,
इन प्यासी आँखों के आगे उड़कर उपजाती है शूल।
उन चरणों की भक्ति-भावना मेरे लिये हुई अपराध,
कभी न पूरी हुई अभागे जीवन की भोली-सी साध।
आशाओं-अभिलाषाओं का एक-एक कर हृास हुआ,
मेरे प्रबल पवित्र प्रेम का इस प्रकार उपहास हुआ!
दुःख नहीं सरबस हरने का, हरते हैं, हर लेने दो,
निठुर निराशा के झोंकों को मनमानी कर लेने दो।
हे विधि, इतनी दया दिखाना मेरी इच्छा के अनुकूल-
उनके ही चरणों पर बिखरा देना मेरा जीवन-फूल।
</poem>
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