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फुलवारी / एस. मनोज

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आबें बौआ देखें तों सभ
की सभ छै फुलवारी में
कतेक रास सभ फूल खिलल छै
एतय क्यारी-क्यारी मे

रंग बिरंगक जूही चंपा
एतय गम-गम गमकै छै
पातक उपर बुन्न ओसकें
मोती जैसन चमकै छै

तितली, गैरसिकिया क देखहीं
ओहि फूल पर आबै छै
फूल पर बैसल कीट फतिंगा
सभहक मोनक भाबै छै

भौरा, मधुमांछी के देखहीं
फूले दिस ओ आबि रहल
भन्न-भन्न आवाज लगै अछि
पंचम स्वरमे गाबि रहल

रंग-रंगक खिलल फूल सभ
प्राकृतिक उपहार थिकै
गूथयकें जँ कष्ट सहै त
भगवानोक हार थिकै

सभे फूल दै अछि सनेस इ
अहौं सभ मुस्काबै जाउ
सभ मानव एक संग रहू आ
अपन धराकें स्वर्ग बनाउ।
</poem>
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