भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एस. मनोज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एस. मनोज
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
दीप बनि-बनि जरब
तमकें प्रतिपल हरब
हम त दिनकरकें सुत छी
दिवाकर बनब।
अछि विषमता जतय
दुःखकें कारण बनल
ओतय समता ल झंडा
उठैबे करब।
जनकें परिचय जतय
जाति सँ, धर्म सँ
कर्मवादी व्यवस्था
बनैबे करब।
अछि जे पहरा पड़ैत
कोखि पर घोघ पर
ओ सभ पहराकें हम त
हटैबे करब।
जँ किसानी-मजूरी ल
आफैत पड़त
त हम सत्ता-व्यवस्था
हिलैबै करब।
घून लागल जतय
लोककें तंत्र मे
तंत्र लोकक सुनरका
बनैबे करब।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=एस. मनोज
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
दीप बनि-बनि जरब
तमकें प्रतिपल हरब
हम त दिनकरकें सुत छी
दिवाकर बनब।
अछि विषमता जतय
दुःखकें कारण बनल
ओतय समता ल झंडा
उठैबे करब।
जनकें परिचय जतय
जाति सँ, धर्म सँ
कर्मवादी व्यवस्था
बनैबे करब।
अछि जे पहरा पड़ैत
कोखि पर घोघ पर
ओ सभ पहराकें हम त
हटैबे करब।
जँ किसानी-मजूरी ल
आफैत पड़त
त हम सत्ता-व्यवस्था
हिलैबै करब।
घून लागल जतय
लोककें तंत्र मे
तंत्र लोकक सुनरका
बनैबे करब।
</poem>