भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
फिर सुबह अखबार खोला रक्त से भींगा हुआ
रह गयीं आँखें फटी मेरे शहर को क्या हुआ
फिर सुबह से शाम तक टीवी पे ख़बरें चल रहीं
फिर कहीं कर्फ्यू लगा है,या कहीं दंगा हुआ
 
पर हुई जब जाँच तो आयी हक़ीक़त सामने
उस इलाक़े का विघायक दोस्तो नंगा हुआ
 
सिर्फ़्र कहने के लिए सीना है छप्पन इंच का
कल जो आदमक़द बना था आज वो बौना हुआ
 
बन के आया था मसीहा करके लेकिन क्या गया
फूँक कर बस क्या मिला नुक़सान तो सबका हुआ
 
इससे ज़्यादा क्या हुआ हासिल मुझे कहकर ग़ज़ल
हो गयी दिल को तसल्ली मन जरा हल्का हुआ
 
चॉद पर जो जा रहे थे फिर ज़मीं पर आ गये
आ गये औक़ात में ये काम तो अच्छा हुआ
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits