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|रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
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<poem>
हे काव्य-सूर्य ! हे कविकुल गुरु ! संस्कृति संरक्षक ! शोक-शमन !
हे संतशिरोमणि ! भक्त प्रवर तुलसी ! तुमको सौ बार नमन ।।

तुमने निज मानस मंथन से जो प्राप्त किया मोती महान ,
वह 'रामचरित' बन चमक रहा, ज्योतित जिससे सारा जहान ।
हे देवदूत ! हे तपःपूत ! सक्षम सपूत ! तारक तुलसी !
तुमसे भारत-भू धन्य हुई, तुमको पाकर 'हुलसी' हुलसी ।।

तेरा विचार आचार बना, आदर्श बना नूतन विधान ,
हे युगदृष्टा ! हे युग स्रष्टा ! हे युग नायक ! हे युग-निधान !
बहु भेद-भाव की ज्वाला से मानवता को सहसा निकाल,
तुमने अमृत का दान किया, हो गया विश्व मानव निहाल ।

हे भारत माँ के मणिकिरीट ! तुमने, पशुता का किया दमन ।
हे संतशिरोमणि ! भक्त प्रवर तुलसी ! तुमको सौ बार नमन ।।

सम्पूर्ण वेद, उपनिषद, धर्म-शास्त्रों का लेकर सरस सार,
मानस का करके महत सृजन निज संस्कृत ली तुमने उबार ।
दासता - दंश से दीन, देश जड़ता से था प्रस्तरी भूत,
उसका तुमने उद्धार किया हे पुण्यात्मा ! हे सुधा- स्यूत !

बरसा कर चिंतन - विमल वारि, हर कर जग का दारुण प्रदाह,
हे युग के मनु ! तुमने दे दी, जन को दे दी जीने की नयी राह ।
तव मानस से जन-मानस की, नस - नस में भरकर रस अपार
फूटी करुणा की कालिन्दी, टूटी वीणा के जुड़े तार ।

मिट गए द्वेष, लुट गए पाप, उत्फुल्ल हुए सब जड़-चेतन ।
हे संतशिरोमणि ! भक्त प्रवर तुलसी ! तुमको सौ बार नमन ।।

हे जन के कवि ! जन हेतु रचा जो तुमने यह मानस महान,
उसमें संचित है भाव भव्य, रस, रीती, नीति, परमार्थ ज्ञान ।
उसमें से निकली रामभक्ति की सुर-गंगा की अमियधार,
बह गए कलुष-कर्दम के गिरी, जन -जीवन में आया निखार।

श्री राम नाम का गूँज उठा, मानव-उद्धारक महामंत्र ,
हो गए गगन, नक्षत्रपुंज, दिग औ' दिगन्त सहसा स्वतंत्र ।
चहुँ ओर समन्वय - समता का लहराया तेरा द्वाज सहर्ष,
सहसा विशिष्ट हो गया शिष्ट इस धरती पर, अजनाभवर्ष ।

हे कव्य - कला के कलित कुञ्ज ! विज्ञानं - ज्ञान के चारु चमन ।
हे संतशिरोमणि ! भक्त प्रवर तुलसी ! तुमको सौ बार नमन ।।

तुमने देखा जो रामराज्य का स्वप्न सुखद, आलोक वरण,
बन गया वही इस जगती के साधन का पुरश्चरण ।
उसको पाने के लिए सतत गतिशील यहाँ पर लोकतंत्र,
बस 'राम-राज्य' स्थापन ही बन गया विश्व का मूल-मंत्र ।

अधुनातन सकल समस्या का प्रस्तुत जिसमें समुचित निदान,
जो शक्ति, शील, सौन्दर्य, मनुज-मर्यादा का मोहक वितान ।
जो है जीवन का श्रेय, प्रेय, नव-रस, यति, गति, लय, ताल, छन्द,
त्रयताप - शाप से पूर्ण मुक्ति, कल्याण-कलित, अविकल अमन्द ।

जो है मानवता का गौरव, भू-मण्डल का है शांति - अमन ।
हे संतशिरोमणि ! भक्त प्रवर तुलसी ! तुमको सौ बार नमन ।।

</poem>
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