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|रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
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<poem>
नशा नाश का प्रतीक, नशा से सुदूर रहें;
नशा में जो फँसा उसे मरा हुआ मानिए ।

तन जाय, धन जाय, सुमन-सा मन जाय;
नशा-ग्रस्त को विवस्त्र, साँप डसा जानिए ।

नशा शान-मान से नशेड़ी को विहीन करे,
दीन करे, नशा के विरुद्ध युद्ध ठानिए ।

नशा कर्कशा-सा कराल काल के समान,
नशा पे तुरंत उग्र तीक्ष्ण तीर तानिए ।


</poem>
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