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|रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
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<poem>

हाथ में लोगों के कट्टे हैं।
खा रहे सब कमलगट्टे हैं।

हैं नहीं जिनको सुलभ ये कुर्सियाँ
कह रहे अंगूर खट्टे हैं।

देश के अब डूबने में क्या कसर?
लग रहे हर रोज सट्टे हैं।

लोक की खुशियाँ उन्हीं के हाथ में
तंत्र जिनके नाम पट्टे हैं।

सह रही जनता भयंकर यातना
मंत्रियों के हँसी ठट्टे हैं।

कौर मुख का छीन लेने के लिए
मारते कौए झपट्टे हैं।

दूध का धोया यहाँ पर कौन है?
सब के सब दागी दुपट्टे हैं।

</poem>
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