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गंगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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गंगे
अच्छा हुआ
हमेशा रही दूर तू दिल्ली से
देख-देख यमुना की हालत
रोये रोज़ हिमालय
सीधी-सादी नदी हो गई
उन्नति का शौचालय
 
ले जा
अपनी बहना को भी
कहीं दूर तू दिल्ली से
 
दिल्ली की नज़रों में अब तू
केवल एक नदी है
पर बूढ़े खेतों की ख़ातिर
अब भी माँ जैसी है
 
कह तो
क्या भविष्य देखा जो
बही दूर तू दिल्ली से
 
दिल्ली तुझ तक पहुँचे
उससे पहले राह बदल दे
और लटें कुछ अपनी खोलें
जाकर शिव से कह दे
 
मत हो
यूँ निश्चिंत
ज़ियादा नहीं दूर तू दिल्ली से
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