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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बन्द कमरे में माँस का लोथड़ा बना पड़ा था जो उसने क्या पाप किया था?
सालों से ढूँढ़ता हूँ सवाल का जवाब।
कविताएँ पढ़ते हुए रूबरू होता हूँ इसी सवाल से बार बार।
तुम पूछते हो मैं पागल तो नहीं हूँ!
अन्दर से काँपता सख्ती से थामता हूँ तुम्हारा हाथ
सुनाता हूँ विपन्न अतीत की कथाएँ।
नील पंखों वाली चिड़िया सडत्रक पर पड़ी थी सवाल बन
क्यों नहीं पहुँच पाता उन तक जो सड़कों पर हैं या
जिनकी रीढ़ें झुकीं खेतों की क्यारियों में।
समझता हूँ मस्तिष्क के स्नायु तंत्र में दौड़ती विद्युत तरंगों के खेल।
हँसता हूँ उन सब पर जो स्वस्थ हैं साफ़ हैं।
सुबह है, धूप है।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है
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बन्द कमरे में माँस का लोथड़ा बना पड़ा था जो उसने क्या पाप किया था?
सालों से ढूँढ़ता हूँ सवाल का जवाब।
कविताएँ पढ़ते हुए रूबरू होता हूँ इसी सवाल से बार बार।
तुम पूछते हो मैं पागल तो नहीं हूँ!
अन्दर से काँपता सख्ती से थामता हूँ तुम्हारा हाथ
सुनाता हूँ विपन्न अतीत की कथाएँ।
नील पंखों वाली चिड़िया सडत्रक पर पड़ी थी सवाल बन
क्यों नहीं पहुँच पाता उन तक जो सड़कों पर हैं या
जिनकी रीढ़ें झुकीं खेतों की क्यारियों में।
समझता हूँ मस्तिष्क के स्नायु तंत्र में दौड़ती विद्युत तरंगों के खेल।
हँसता हूँ उन सब पर जो स्वस्थ हैं साफ़ हैं।
सुबह है, धूप है।
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