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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
उठ सकते कच्ची नींद सुबह
पहुँच सकते दूर गाँव
भीड़ भरी बस चढ़
भूल सके दोपहर-भूख
एक सुस्त अध्यापक के साथ बतियाते
पी सकते एक कप चाय
समझ सकते हैं
पाँच-कक्षाएँ-एक-शिक्षक पैमाना समस्याएँ
लौटते शाम ढली थकान
ब्रेड आमलेट का डिनर
पढ़ते नई किताब
पर नहीं समझ सकते हम
कि है अध्यापक
नाखु़श अपनी ज़िन्दगी से
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
बेसुरी घोषित कर सकते
सोलह-वर्ष-अंग्रेजी शिक्षा
फटी-चड्डी-मैले-बदन-बच्चों से
सीख सकते नए उसूल
भर सकते आँकड़े परचे दर परचे
सभा बुला सकते हैं
सबको साथी मान
साझा कर सकते हैं
देश विदेश् अपनी उनकी बातें
मौक़ा दे सकते हैं
सबको बोलने का
लिख सकते डायरी में
मनन कर सकते
फिर भी नहीं समझ सकते कि
हैं कम पैसे वाले लोग
नाख़ुश अपनी ज़िन्दगी से
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
दारू, फिल्में, कॉफ़ी-महक-परिचर्चाएँ
एक-एक कर छोड़ सकते हैं
बन सकते आदर्श
कई भावुक दिलों में
हो सकते इतने प्रभावी
कि लोग भीड़-धूल-सड़क में भी
दूर से पहचान लें
आकार लें हमारे शब्दों से
गोष्ठियाँ, सुधार-मंच, मैत्री संघ
पर नहीं सकझ सकते
क्यों बढ़ते रहें झगड़े, कुचले जाएँ ग़रीब
हम हो सकते हैं बहुत अच्छे
गा सकते कभी नागार्जुन, कभी पाश...
सुना सकते फै़ज ऐसे कि
लोग झूम उठें
नहीं समझ सकते फिर भी
कैसे घुस आता दक्षिण अफ्रीका
हर रोज़ घर में रोटियाँ पकाने
झाडू लगाने
हम यह सब नहीं समझ सकते
हम ऐसा नहीं बन सकते
कि ज़िन्दगी में हम हों नाख़ुश इस क़दर
कि उठाने लगंे पत्थर
सोच समझ निशाने लगाएँ
तोड़ डालें काँच की दीवारें
जिनके आर-पार नहीं दिखता हमें
जो हम नहीं सोच सकते।
</poem>
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|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
उठ सकते कच्ची नींद सुबह
पहुँच सकते दूर गाँव
भीड़ भरी बस चढ़
भूल सके दोपहर-भूख
एक सुस्त अध्यापक के साथ बतियाते
पी सकते एक कप चाय
समझ सकते हैं
पाँच-कक्षाएँ-एक-शिक्षक पैमाना समस्याएँ
लौटते शाम ढली थकान
ब्रेड आमलेट का डिनर
पढ़ते नई किताब
पर नहीं समझ सकते हम
कि है अध्यापक
नाखु़श अपनी ज़िन्दगी से
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
बेसुरी घोषित कर सकते
सोलह-वर्ष-अंग्रेजी शिक्षा
फटी-चड्डी-मैले-बदन-बच्चों से
सीख सकते नए उसूल
भर सकते आँकड़े परचे दर परचे
सभा बुला सकते हैं
सबको साथी मान
साझा कर सकते हैं
देश विदेश् अपनी उनकी बातें
मौक़ा दे सकते हैं
सबको बोलने का
लिख सकते डायरी में
मनन कर सकते
फिर भी नहीं समझ सकते कि
हैं कम पैसे वाले लोग
नाख़ुश अपनी ज़िन्दगी से
कितने अच्छे हो सकते हैं हम
दारू, फिल्में, कॉफ़ी-महक-परिचर्चाएँ
एक-एक कर छोड़ सकते हैं
बन सकते आदर्श
कई भावुक दिलों में
हो सकते इतने प्रभावी
कि लोग भीड़-धूल-सड़क में भी
दूर से पहचान लें
आकार लें हमारे शब्दों से
गोष्ठियाँ, सुधार-मंच, मैत्री संघ
पर नहीं सकझ सकते
क्यों बढ़ते रहें झगड़े, कुचले जाएँ ग़रीब
हम हो सकते हैं बहुत अच्छे
गा सकते कभी नागार्जुन, कभी पाश...
सुना सकते फै़ज ऐसे कि
लोग झूम उठें
नहीं समझ सकते फिर भी
कैसे घुस आता दक्षिण अफ्रीका
हर रोज़ घर में रोटियाँ पकाने
झाडू लगाने
हम यह सब नहीं समझ सकते
हम ऐसा नहीं बन सकते
कि ज़िन्दगी में हम हों नाख़ुश इस क़दर
कि उठाने लगंे पत्थर
सोच समझ निशाने लगाएँ
तोड़ डालें काँच की दीवारें
जिनके आर-पार नहीं दिखता हमें
जो हम नहीं सोच सकते।
</poem>