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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
वह आदमी मान रहा है कि उसे पता है
कि उसने यम से बातें की हैं

उसने यम से गुफ़्तगू करते हुए
आधुनिक विज्ञान को परास्त होते हुए देखा है
इस तरह मानते हुए वह कहता है
कि विज्ञान ग़लत मान्यताओं पर टिका है
उसे ज़रा भी शक नहीं है कि
यम से बातचीत का ज़िक्र वह अपनी
असहायता को छिपाने के लिए करता है

उसका पुरुष अहम् उसे हार मानने नहीं देता है
वह विज्ञान के साथ टक्कर लेता है
एक नर्म दीवार उसके लिए कठोर हो गई है
माथा टकरा कर वह जंगली भैंसे सा वापस आता है
बार बार चीख़ता कि आधुनिक विज्ञान के विकल्पों को मानो

आखि़रकार थकता है वह
परास्त भैंसा मैदान छोड़ कर दूसरी ओर मुँह फेरे चल देता है
छलकती आँखों से आँसू बहने को हैं
इसलिए धीरे धीरे दूर चला जाता है
काँपता सिहरता यम से बातचीत की स्मृति को दुबारा जीता है।

</poem>
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