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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
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<poem>
जब सारे भ्रम दूर हैं
अपनी चहारदीवारी के अन्दर हूँ
यह कैसा भ्रम कि बात कर रहा हूँ ख़ुद से
वही तो है जो आईने में है
वही है बिस्तर पर, वही है चादर तकिया
सपना नहीं, वही है जो आती है नींद-परी।

</poem>
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