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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>

गहरे नीले में थी वह जब उसने
मुझे कविताओं की किताब दी
दूर थी तो नीला शरत् का आकाश था
कविताएँ साझा करते हुए वह
आसमान मेरी ओर आ रही थी

पास उसकी मुस्कान नीले पर बिछ गई
वह मुस्कान मुझे कविताएँ दे रही थी।

</poem>
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