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|रचनाकार=लाल्टू
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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
तोलस्ताय ने सौ साल पहले भोगा था यह एहसास
जो बहुत दूर हैं उनसे प्यार नहीं है
दूर देशों में बर्फ़ानी तूफ़ानों में
सदियों पुरने पुलों की आत्माएँ
आग की बाढ़ में कूदतीं
निष्क्रिय हम चमकते पर्दों पर देखते
मिहिरकुल का नाच

जो बहुत क़रीब हैं उनसे नफ़रत
क़रीब के लोगों को देखना है ख़ुद को देखना
इतनी बड़ी यातना
जीने की वजह है दरअसल

जो बीचोंबीच बस उन्हीं के लिए है प्यार
भीड़ में कुरेद कुरेद अपनी राह बनाते
ढूँढ़ते हैं बीच के उन लोगों को
जो कहीं नहीं हैं

समूची दुनिया से प्यार
न कर पाने की यातना
जब होती तीव्र
उगता है ईश्वर
उगती दया
उन सबके लिए
जिन्हें यह यातना अँधेरे की ओर ले जा रही है

हमारे साथ रोता है ईश्वर
खु़द को मुआफ़ करता हुआ।

</poem>
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