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|रचनाकार=मधु शर्मा
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<poem>
छिपे चेहरे को देखता है
नीली रात के आइने में चेहरा,
वह शक में है और वहीं से
बंद हो चला है अब
आइने में चेहरे का दिखना भी
उलझता है अनिश्चय बात-बे-बात
मन को टिका
वह कहाँ बैठे
कि गहना है जल
मन के धार डुबा देने को।
</poem>
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<poem>
छिपे चेहरे को देखता है
नीली रात के आइने में चेहरा,
वह शक में है और वहीं से
बंद हो चला है अब
आइने में चेहरे का दिखना भी
उलझता है अनिश्चय बात-बे-बात
मन को टिका
वह कहाँ बैठे
कि गहना है जल
मन के धार डुबा देने को।
</poem>