619 bytes added,
20:17, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अलग अलग समय में
खड़े हैं वे बरसों से
अलग अग जगह
घिरती हुई रातों में
होती हुई सुबहों में
दुपहरियों में जलते हुए
वे खड़े हैं चुपचाप
हमारे जीने के
सकल्प की तरह-
जीवन में
गहरे तक धँसे।
</poem>