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{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तै करने में वक़्त तो लगता है
गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हमने इलाजे - ज़ख्मे-दिल तो ढूँढ़ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
</poem>
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|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
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प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तै करने में वक़्त तो लगता है
गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हमने इलाजे - ज़ख्मे-दिल तो ढूँढ़ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
</poem>