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|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए
सौ आ़फतों का साथ है दिन-रात के लिए

अब है फ़जूल वक़्त कहाँ आदमी के पास
दर और कोई ढूँढ़िए जज़्बात के लिए

ऐसा नहीं कि लोग निभाते नहीं हैं साथ
आवाज़ दे के देख फ़सादात के लिए

इल्ज़ाम दीजिए न किसी एक शख़्स को
मुजरिम सभी हैं आज के हालात के लिए

उसने उसे फिज़ूल समझकर उड़ा दिया
बरबाद हो चला हूँ मैं जिस बात के लिए
</poem>