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{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब मैं छोटा था, एक रोज़, मैंने पढ़ा था
एक कवि के बारे में, जिसे बहुत दिन हुए मरे
सो गया था जो, जैसा करते हैं कवि
लिखने में – और दूसरों को भी करते हैं मज़बूर
पर कहानी का सार यहाँ पर है,
कि कैसे एक प्रसन्नचित्त रानी आई और चुंबन दी
उस सोते हुए को.
'बेहतरीन', मैंने सोचा.
'इस तरह का सौभाग्य, मैं भी आजमाता हूँ'
बहुत सारा कुछ हम कवि बनावट में करते हैं
मैंने सोने का बहाना किया, हालाँकि व्यर्थ ही रहा
मैं करवट बदला, इस बगल से उस बगल होता रहा
फैलाये हुए नथुने और मुँह खोले
आखिरकार आई एक सुंदर कुमारी
और घूरी, तब मैंने कहा ख़ुद से
'अब आगे बढ़ो!' वह, बजाय चुंबन के
चिल्लाने लगी.. 'कैसा काहिल छोकरा है ये!'
</poem>
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|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
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<poem>
जब मैं छोटा था, एक रोज़, मैंने पढ़ा था
एक कवि के बारे में, जिसे बहुत दिन हुए मरे
सो गया था जो, जैसा करते हैं कवि
लिखने में – और दूसरों को भी करते हैं मज़बूर
पर कहानी का सार यहाँ पर है,
कि कैसे एक प्रसन्नचित्त रानी आई और चुंबन दी
उस सोते हुए को.
'बेहतरीन', मैंने सोचा.
'इस तरह का सौभाग्य, मैं भी आजमाता हूँ'
बहुत सारा कुछ हम कवि बनावट में करते हैं
मैंने सोने का बहाना किया, हालाँकि व्यर्थ ही रहा
मैं करवट बदला, इस बगल से उस बगल होता रहा
फैलाये हुए नथुने और मुँह खोले
आखिरकार आई एक सुंदर कुमारी
और घूरी, तब मैंने कहा ख़ुद से
'अब आगे बढ़ो!' वह, बजाय चुंबन के
चिल्लाने लगी.. 'कैसा काहिल छोकरा है ये!'
</poem>