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वाल्टर सेवेज लैंडर / परिचय

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' • इंग्लैंड के वारविक नामक कस्बे में 30 जनवरी 1775 को जन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया

• इंग्लैंड के वारविक नामक कस्बे में 30 जनवरी 1775 को जन्म हुआ 'वॉल्टर सेवेज लैंडर' का। एक चिकित्सक डॉ वॉल्टर लैंडर और उनकी दूसरी पत्नी एलिज़ाबेथ सेवेज के सबसे बड़े बेटे। उनकी जन्मभूमि 'ईस्टगेट भवन' पर अब लड़कियों का एक विद्यालय 'द किंग्स हाई स्कूल' का संचालन होता है।

• नवासी साल के अपने लंबे सक्रिय जीवनकाल में उन्होंने विभिन्न विधाओं में काफ़ी रचनाएं कीं। जिन्हें मुख्यतः चार क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है– गद्य, गीत, कविता, और एपिग्राम्स(विदग्धोक्तियों) सहित राजनीतिक लेखन।
अब अक्सर उनका वर्णन 'अंग्रेज़ी की शायद सबसे अच्छी बहुत छोटी कविताओं के लेखक' के रूप में किया जाता है।

• उनका सबसे प्रसिद्ध काम है 'इमेजिनरी कंवर्सेशन्स' यानी 'काल्पनिक वार्तालाप' जो उन्होंने यूनान के प्राचीन दर्शनशास्त्रियों और तत्कालीन लेखकों के बीच से अलग-अलग ऐतिहासिक चरित्रों को लेकर उनके मध्य कराया था.. और जिनका दर्शन, राजनीति, प्रेम, आदि और ऐसे ही अन्य तमाम क्षेत्रों तक विस्तार था। और उनके इस अभ्यास ने उनके नाटकों के बजाय संवाद-लेखन के उनके प्राकृतिक गुण को कहीं ज़्यादा गहनता से सिद्ध किया।

• उनकी प्रेम-कविताएं उनके जीवन में सिलसिलेवार आने वाली कई प्रियतम बनी स्त्री-चरित्रों से प्रेरित थीं– आयोन, आयन्थी, रोज़ एल्मर, और रोज़ पेंटर। साथ ही, अपने बच्चों और अपनी बहन के बारे में लिखी उनकी गृह्य कवितायें भी उतनी ही संवेदनशील स्थित होती हैं।

• 'लैंडर' साब ने तीन सौ से ज़्यादा कवितायें तथा लघु और दीर्घ राजनीतिक निबंध लैटिन भाषा में लिखा, पर जिन्हें आमतौर पर उनके संग्रहों में नहीं शामिल किया जाता। हालाँकि 'लैंडर' साब ख़ुद लैटिन भाषा को कुछ चीजों की अभिव्यक्ति के लिए ज़्यादा उपयोगी मानते थे, जिनकी अंग्रेज़ी अभिव्यक्ति को वे 'भद्दी और अनाकर्षक' कहते।

• 'लैंडर' साहब 'रॉबर्ट साउदी' और 'कोलरिज' के करीबी मित्र थे। 'वर्डस्वर्थ' से उनका संबंध समय के साथ अत्यधिक प्रशंसा से शुरू होकर कुछ नाराजगियों तक परिवर्तित हुआ। 'लॉर्ड बायरन' उनका उपहास करने और उन्हें दुत्कारने में लगे रहते, और भले ही जीते जी उनके जवाब में 'लैंडर' साहब के पास कुछ अच्छा कहने को नहीं रहा, पर उनकी मृत्यु पर उन्होंने शोक व्यक्त किया और उनकी एक 'डेड हीरो' के रूप में प्रसंशा की।
उन्होंने चार्ल्स डिकेन्स तथा रॉबर्ट ब्राउनिंग सरीखे अगली पीढ़ी के साहित्यिक संस्कारकों से मित्रता रखी और उन्हें प्रभावित किया। 'लाइव्स ऑफ द पोएट्स' पुस्तक में 'माइकल श्मिड्ट' कहते हैं कि 'यीट्स, एज़्रा पाउंड, और रॉबर्ट फ्रॉस्ट, आदि महान कवियों को उनके आलोक से मार्गदर्शन मिला'।


• 1808 में वे स्पेन चले गए, नेपोलियन के विरुद्ध एक लड़ाई में भाग लेने, और अपनी सेवा दिए।
'लैंडर' साहब की ज़िन्दगी बहुत दुखद रही। जिंदगी भर वे झगड़ो-पचड़ों में, फ़िज़ूलख़र्ची में और यहाँ-वहाँ भागने में लगे रहे। कभी अपने पड़ोसियों से, तो कभी राजनीतिक बवालों में। अपने पिता से लड़े, अपनी पत्नी से, अपने अधिकतर संबंधियों से, लगभग अपने सारे दोस्तों से, कई जगहों पर भागे, और आख़िरकार इटली में आख़िरी समय बिताया.. अपने भाईयों से मिलने वाले पेंशन के सहारे। हालाँकि फिर भी उनकी ज़िन्दगी गहन स्नेह और उदारता से बिल्कुल वंचित रही ऐसा भी नहीं है।

• सतत कर्ज़ में रहते हुए, उन्होंने देश भर की यात्रा की, पर बहुत सारा समय 'बाथ' शहर में ही बिताया। यहीं वे 'सोफ़िया जेन स्विफ़्ट' से मिले, जो पहले से ही अपने चचेरे भाई 'गोडविन स्विफ़्ट' संग संलग्न थीं। और 'लैंडर' साब की प्रचंड विनतियों के बावज़ूद उन्होंने उसी से शादी की। 'लैंडर' साहब ने उन्हें 'आयन्थी' नाम दिया था और अपनी कुछ सबसे ख़ूबसूरत कवितायें उन्हीं के लिए लिखीं।
वे जब वेल्स शहर में 'टेनबी' नामक स्थान पर गए थे, उनका एक स्थानीय लड़की 'नैंसी इवान्स' से प्रेम-संबंध बन गया था। उसे वे 'आयोन' नाम से पुकारते थे, जिसके लिए 'लैंडर' साहब ने अपनी कुछ सबसे शुरुआती प्रेम कवितायें लिखी थीं।

• 1861 में, अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद 'ब्राउनिंग' ने इटली छोड़ दिया था। उसके बाद 'लैंडर' साहब चिड़चिड़े और बेचैन रहने लगे, बहुत कम ही घर से निकलते। बस कभी-कभी उनके बेटे उनसे मिलने आ जाते थे। वे अपने चित्रों के एक संग्रह के बारे में बहुत चिंतित थे, जिसमें बहुत कम ही काम का था, और अपने कब्र की तैयारी के बारे में भी, क्योंकि वे चाहते थे कि उन्हें 'बाथ' शहर के पास स्थित 'विडकॉम्ब' में दफ़नाया जाए।

उनके जीवन की लगभग आख़िरी उल्लेखनीय घटना थी 1864 में कवि 'स्विनबर्न' का उनसे मिलने आना, जो 'फ्लोरेंस' में केवल उनसे मिलने के लिए ही आये थे, और अपना काव्य-संग्रह 'अटलांटा इन कैलिडॉन' उन्हें समर्पित किया था।

• 1864 में एक मई को 'लैंडर' साहब ने अपनी भू-मालकिन से कहा, "मैं अब कभी भी नहीं लिखूँगा। बत्तियाँ बुझा दो और खींच दो पर्दे.."। इसके कुछ महीनों बाद नवासी की उम्र में वे शांति से फ्लोरेंस में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। हालाँकि आख़िरकार उन्हें विडकॉम्ब नहीं बल्कि 'इंग्लिश सेमेट्री' फ्लोरेंस में ही दफ़ना दिया गया.. उनकी दोस्त 'एलिज़ाबेथ बैरेट ब्राउनिंग' की कब्र के बगल में
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