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{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने कुछ भी से बैर नहीं रखा,
कि कुछ भी काबिल नहीं था मेरे बैर के
प्रेम किया प्रकृति से, और, प्रकृति के बाद, कला से
मैंने दोनों हाथ सेंके जीवन के अलाव पर
यह बुझता है; और मैं प्रस्थान करने को तैयार हूँ..
[1849 में अपने 74वें जन्मदिन पर 'लैंडर' साहब ने यह प्रसिद्ध समाधि-लेख(Epitaph) लिखा, अपने लिए..]
</poem>
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मैंने कुछ भी से बैर नहीं रखा,
कि कुछ भी काबिल नहीं था मेरे बैर के
प्रेम किया प्रकृति से, और, प्रकृति के बाद, कला से
मैंने दोनों हाथ सेंके जीवन के अलाव पर
यह बुझता है; और मैं प्रस्थान करने को तैयार हूँ..
[1849 में अपने 74वें जन्मदिन पर 'लैंडर' साहब ने यह प्रसिद्ध समाधि-लेख(Epitaph) लिखा, अपने लिए..]
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