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|रचनाकार=विशाल समर्पित
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जीवन कितना सुंदर होता
सच में यदि आ जातीं तुम
हिम-गिरि जैसे मेरे उर को
साँसों से तुमने पिघलाया
साथ जिएँगे साथ मरेंगे
बातों से मुझको बहलाया
उलझी-उलझी बातें करके
घंटो प्रिय बतियातीं तुम... (1)
मुझे देखकर तुम रोई थीं
झरझर-झरझर नीर झरा था
काश कि सोचा होता तब
जब, दूजे का सिंदूर भरा था
किसी और को चुनकर प्रियतम
सच में क्या पछतातीं तुम... (2)
अब अपने रिश्ते में मधुरिम
कोई बंधन शेष नहीं है
जबसे तुमसे नाता टूटा
मन में कोई क्लेश नहीं है
पर अक्सर सपनों में आकर
मेरी नींद उड़ातीं तुम... (3)
</poem>
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|संग्रह=
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जीवन कितना सुंदर होता
सच में यदि आ जातीं तुम
हिम-गिरि जैसे मेरे उर को
साँसों से तुमने पिघलाया
साथ जिएँगे साथ मरेंगे
बातों से मुझको बहलाया
उलझी-उलझी बातें करके
घंटो प्रिय बतियातीं तुम... (1)
मुझे देखकर तुम रोई थीं
झरझर-झरझर नीर झरा था
काश कि सोचा होता तब
जब, दूजे का सिंदूर भरा था
किसी और को चुनकर प्रियतम
सच में क्या पछतातीं तुम... (2)
अब अपने रिश्ते में मधुरिम
कोई बंधन शेष नहीं है
जबसे तुमसे नाता टूटा
मन में कोई क्लेश नहीं है
पर अक्सर सपनों में आकर
मेरी नींद उड़ातीं तुम... (3)
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