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|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
छोड़ लुकाठी ले पिचकारी, कबिरा धाये होली में।
सूरदास की काली कमली, रँग-रँग जाये होली में।
बूढ़ा बरगद करे भाँगड़ा, छुईमुई कैबरे करे,
किसमिस सोठ छुहारा फिरते, फिर गदराये होली में।
नर्तकियाँ सब राधा लगतीं, लम्पट सब लगते कान्हा,
मदिरालय वृन्दावन लगते, जग बौराये होली में।
धमाचौकड़ी मचा के' लौटा, गिरगिट संवत्सर बाँचे,
रंग बदलना जिसे न भाये, गाल फुलाये होली में।
नंगा नाच दिखाये, बोले–'बुरा न मानो होली है' ,
भीतर का पशु मार कुलाँचे, बाहर आये होली में।
होली-रोली की तुकबंदी, रुकती जाकर चोली पर,
कविता से कवि करे ठिठोली, गाल बजाये होली में।
छम्मक-छम्मक वाणी नाचे, खुली भड़ैती शब्द करे,
छंद-बंध-अनुबंध फिर रहे, पूछ उठाये होली में।
संचालक-संवर्धक नाचें, नाचें सब परिजन-प्रियजन,
त्रिकिट-ध्रिकिट-धुम नाचे 'नीरव' , लोक नचाये होली में।
———————————
आधार छंद-लावणी
विधान-30 मात्रा, 16, 14 पर यति, अंत में वाचिक गा
</poem>
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छोड़ लुकाठी ले पिचकारी, कबिरा धाये होली में।
सूरदास की काली कमली, रँग-रँग जाये होली में।
बूढ़ा बरगद करे भाँगड़ा, छुईमुई कैबरे करे,
किसमिस सोठ छुहारा फिरते, फिर गदराये होली में।
नर्तकियाँ सब राधा लगतीं, लम्पट सब लगते कान्हा,
मदिरालय वृन्दावन लगते, जग बौराये होली में।
धमाचौकड़ी मचा के' लौटा, गिरगिट संवत्सर बाँचे,
रंग बदलना जिसे न भाये, गाल फुलाये होली में।
नंगा नाच दिखाये, बोले–'बुरा न मानो होली है' ,
भीतर का पशु मार कुलाँचे, बाहर आये होली में।
होली-रोली की तुकबंदी, रुकती जाकर चोली पर,
कविता से कवि करे ठिठोली, गाल बजाये होली में।
छम्मक-छम्मक वाणी नाचे, खुली भड़ैती शब्द करे,
छंद-बंध-अनुबंध फिर रहे, पूछ उठाये होली में।
संचालक-संवर्धक नाचें, नाचें सब परिजन-प्रियजन,
त्रिकिट-ध्रिकिट-धुम नाचे 'नीरव' , लोक नचाये होली में।
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आधार छंद-लावणी
विधान-30 मात्रा, 16, 14 पर यति, अंत में वाचिक गा
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