भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetika}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeetika}}
<poem>
दारू की बोतल क्यों लाये, लेकर आते मूँगफली।
आस लगाए बैठे बच्चे, छीन चबाते मूँगफली।
खरी भुनी हो या हो गादा, लेकिन नमक ज़रूरी है,
निर्धन के बादाम यही हैं, जो कहलाते मूँगफली।
आधी रात बिता दी यों ही, हम दोनों ने बतियाते,
छील-छील कर इक-दूजे की, ओर बढ़ाते मूँगफली।
यदि प्रसाद में भक्त चढ़ाते, दीनों के बादाम कहीं,
दीनबंधु प्रभु आगे बढ़कर, भोग लगाते मूँगफली।
नाम कृषक सुनते नेता का, मुँह बन जाता है ऐसे,
जैसे घुनी हुई आ जाये, खाते-खाते मूँगफली।
छोटी-छोटी बीन-बीन कर, रहे चबाते खुद 'नीरव',
बड़ी-बड़ी मित्रो की खातिर, रहे बचाते मूँगफली।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeetika}}
<poem>
दारू की बोतल क्यों लाये, लेकर आते मूँगफली।
आस लगाए बैठे बच्चे, छीन चबाते मूँगफली।
खरी भुनी हो या हो गादा, लेकिन नमक ज़रूरी है,
निर्धन के बादाम यही हैं, जो कहलाते मूँगफली।
आधी रात बिता दी यों ही, हम दोनों ने बतियाते,
छील-छील कर इक-दूजे की, ओर बढ़ाते मूँगफली।
यदि प्रसाद में भक्त चढ़ाते, दीनों के बादाम कहीं,
दीनबंधु प्रभु आगे बढ़कर, भोग लगाते मूँगफली।
नाम कृषक सुनते नेता का, मुँह बन जाता है ऐसे,
जैसे घुनी हुई आ जाये, खाते-खाते मूँगफली।
छोटी-छोटी बीन-बीन कर, रहे चबाते खुद 'नीरव',
बड़ी-बड़ी मित्रो की खातिर, रहे बचाते मूँगफली।
</poem>