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नाबालिक / सन्नी गुप्ता 'मदन'

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<poem>
मनई-मनइक आज खात बा
शील दया ई कुल हेराय गै।
मनइस नीक भइन अब गोरु
मनइम गोरुक जीन आय गै।
मनई करै शिकार मनइयेक
एसे नीक तो गोरु बाटे।
कमसे कम अपने औ गैरेक
यनके अंदर चिंता बाटे।
जाने कइसे मनई होइ कै यतना नीच सोच कै पाइन।
कुछ मानव दानव बनि कै यक नाबालिक का नोच कै खाइन।
चाचा ताऊ मामा दादा
यनपै के विश्वास करी।
ऐसे जौ मानवता रोजै
मूड पटक कै यही मरी।
वहि बिटिया कै का कसूर बा
जे वनपे विश्वास किहिस।
जौ यहि धरती के लोगन का
निज कुटुम्ब सा मान लिहिस।
अच्छी खासी लखत आँख मा देखा लकड़ी कोच कै लाइन।
कुछ मानव दानव बनि कै यक नाबालिक का नोच कै खाइन।
बिटिया तू न करा भरोसा
सब बाटे यहि हवस पुजारी।
तू खुद ही बन जा अब दुर्गा
सिर्फ बना न अब महतारी।
एक-एक बदला ल्या आपन
रहा न तू कानून सहारे।
ख़तम न होइहैं दुष्ट धरा से
बिन यनका धरतिस संहारे।
देखा कुछ रक्षशन के चलते तन पै खिचीं खरोच कै लाइन।
कुछ मानव दानव बनि कै यक नाबालिक का नोच कै खाइन।
</poem>
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