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Kavita Kosh से
झट से हाथ पकड़ लेता हूँ मैं उसका : सिर्फ धुआँसा-सा कुछ
सफ़ेद कपड़े की तरह क्यों दिखता उसका मुखड़ा !
— दर्द होता है बाबा? मैं तो कब की मर चुकी हूँ... आज भी याद करते हो तुम मुझे?
दोनों हाथों को चुपके से हिलाती हौले-हौले